श्री.रामदरश मिश्र की कविता चिट्ठियाँ कक्षा में एक मलयालम सिनेमा के साथ प्रस्तुत करें। आधुनिक मानव चिट्ठियों के समान एक दूसरे को न पहचानते हैं। वे अपनी अपनी दुनिया में जीते हैं। रंजित की सिनेमा केरला कफे में एक फिल्म इस प्रकार है। एक बस की यात्रियों के माध्यम से निदेशक श्री.लाल जोस भी पूछते हैं-क्या हम भी लेटर बॉक्स की चिट्ठियाँ हो गए हैं?
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