29 नवंबर, 2010

हताशा -(कविता) श्री विनोदकुमार शुक्ल

यह श्री कुमार अंबुज की 'एक आदमी जंगल में' कविता की विरोधी कविता मानी जाती है।
हताशा
हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था
व्यक्ति को मैं नहीं जानता था
हताशा को मैं जानता था।
इसलिए मैं उस व्यक्ति के पास गया
मैं ने हाथ बढ़ाया।
मेरा हाथ पकड़कर वह खड़ा हुआ।
मुझे वह नहीं जानता था
हाथ बढ़ाने को जानता था।
हम दोनों साथ चले।
दोनों एक दूसरे को नहीं जानते थे
साथ चलने को जानते थे।

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