29 जुलाई, 2011
06 जुलाई, 2011
रामदरश मिश्र की कविता- आभारी हूँ बहुत दोस्तों
आभारी हूँ बहुत दोस्तों
रामदरश मिश्र
आभारी हूँ बहुत दोस्तो, मुझे तुम्हारा प्यार मिला
सुख में, दुख में, हार-जीत में एक नहीं सौ बार मिला!
सावन गरजा, भादों बरसा, घिर-घिर आई अँधियारी
कीचड़-कांदों से लथपथ हो, बोझ हुई घड़ियाँ सारी
तुम आए तो लगा कि कोई कातिक का त्योहार मिला!
इतना लम्बा सफ़र रहा, थे मोड़ भयानक राहों में
ठोकर लगी, लड़खड़ाया, फिर गिरा तुम्हारी बाँहों में
तुम थे तो मेरे पाँवों को छिन-छिनकर आधार मिला!
आया नहीं फ़रिश्ता कोई, मुझको कभी दुआ देने
मैंने भी कब चाहा, दूँ इनको अपनी नौका खेने
बहे हवा-से तुम, साँसों को सुन्दर बंदनवार मिला!
हर पल लगता रहा कि तुम हो पास कहीं दाएँ-बाएँ
तुम हो साथ सदा तो आवारा सुख-दुख आए-जाए
मृत्यु-गंध से भरे समय में जीवन का स्वीकार मिला
सुख में, दुख में, हार-जीत में एक नहीं सौ बार मिला!
सावन गरजा, भादों बरसा, घिर-घिर आई अँधियारी
कीचड़-कांदों से लथपथ हो, बोझ हुई घड़ियाँ सारी
तुम आए तो लगा कि कोई कातिक का त्योहार मिला!
इतना लम्बा सफ़र रहा, थे मोड़ भयानक राहों में
ठोकर लगी, लड़खड़ाया, फिर गिरा तुम्हारी बाँहों में
तुम थे तो मेरे पाँवों को छिन-छिनकर आधार मिला!
आया नहीं फ़रिश्ता कोई, मुझको कभी दुआ देने
मैंने भी कब चाहा, दूँ इनको अपनी नौका खेने
बहे हवा-से तुम, साँसों को सुन्दर बंदनवार मिला!
हर पल लगता रहा कि तुम हो पास कहीं दाएँ-बाएँ
तुम हो साथ सदा तो आवारा सुख-दुख आए-जाए
मृत्यु-गंध से भरे समय में जीवन का स्वीकार मिला
चिट्ठियाँ- कविता पढ़ाएँ सिनेमा के साथ
श्री.रामदरश मिश्र की कविता चिट्ठियाँ कक्षा में एक मलयालम सिनेमा के साथ प्रस्तुत करें। आधुनिक मानव चिट्ठियों के समान एक दूसरे को न पहचानते हैं। वे अपनी अपनी दुनिया में जीते हैं। रंजित की सिनेमा केरला कफे में एक फिल्म इस प्रकार है। एक बस की यात्रियों के माध्यम से निदेशक श्री.लाल जोस भी पूछते हैं-क्या हम भी लेटर बॉक्स की चिट्ठियाँ हो गए हैं?
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